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इन दिनों सड़कों पर आस्था का राज है। व्यवस्था कागजों में है और आमजन बदहवास हैं। कांवड़ यात्रा के दौरान यह हाल सिर्फ यूपी के चार जिलों का है। गंगाजल लेकर शिवभक्त हरिद्वार (उत्तराखंड) से आवागमन कर रहे हैं। उत्तराखंड में हाइवे बाधित नहीं है। यहां मंगलौर से लेकर हरिद्वार तक 21 किमी कांवड़ पटरी मार्ग (अपर गंग नहर के किनारे) पूरी तरह विकसित है और सारे शिवभक्त यहीं से गुजर रहे हैं। मोदीनगर (गाजियाबाद) से लेकर हरिद्वार तक का यह कांवड़ मार्ग 142 किमी लंबा है, जो छह साल पहले घोषित किया गया था। उत्तराखंड में 21 किमी मार्ग पर प्रतिवर्ष 40 करोड़ रुपये रखरखाव और सुविधाओं पर खर्च होते हैं। उत्तर प्रदेश में 121 किमी लंबे मार्ग पर गड्ढे भरने के नाम पर प्रतिवर्ष 4 करोड़ रुपये खर्च होते हैं और सुविधाओं के प्लान हर साल फाइलों में रह जाते हैं। नतीजा, नेशनल हाइवे-58 (वाया मेरठ, मुजफ्फरनगर) और देहरादून-पंचकूला हाइवे (वाया सहारनपुर) तथा इनसे जुड़े 19 मार्ग पूरी तरह से यातायात के लिए बंद कर दिए जाते हैं। सहारनपुर हालांकि अलग रूट पर है, लेकिन कांवड़ पटरी मार्ग वाले गाजियाबाद, मेरठ, मुजफ्फरनगर जिलों में एक हाइवे और इससे जुड़े 18 प्रमुख मार्ग इन दिनों यातायात के लिए पूरी तरह से बंद हैं। जबकि, उत्तराखंड की सीमा शुरू होते ही हरिद्वार में हाइवे आम दिनों की तरह सुचारू चल रहा है। क्योंकि यहां शिव भक्त कांवड़ मार्ग से जा रहे हैं। यूपी में यह मार्ग बदहाल होने के कारण महज 13 फीसदी स्थानीय शिवभक्त ही कांवड़ पटरी का उपयोग करते हैं। बाकी हाइवे और अन्य प्रमुख मार्गों से गुजर रहे हैं। गाजियाबाद से दिल्ली में प्रवेश करते ही दिल्ली सरकार की व्यवस्था भी सालों से बेहतर है। यहां मार्गों पर पांच फुट किनारे का मार्ग रस्सियां लगाकर शिवभक्तों के लिए आरक्षित है और यातायात भी सुचारू रूप से चल रहा है। यानी, सिर्फ उत्तर प्रदेश में ही व्यवस्था चौपट है। उत्तराखंड और दिल्ली की व्यवस्थाएं दूरगामी हैं। अब बात सहारनपुर से होकर गुजरने वाले देहरादून-पंचकूला हाइवे की। सहारनपुर में कोई बाइपास नहीं है और ले-देकर यह एक ही गड्ढामुक्त मार्ग है, जो पूरी तरह से यातायात के लिए बंद है। हरियाणा और पंजाब से आने वाले शिवभक्त यहीं से होकर गुजर रहे हैं। इस जिले में आस्था की इस यात्रा के लिए अभी दस साल तक कोई वैकल्पिक मार्ग उपलब्ध हो जाए, इस बारे में सोचना भी गुनाह है। प्रदेश के लोक निर्माण मंत्री शिवपाल सिंह यादव की बेटी इसी सहारनपुर शहर में ब्याही है। डेढ़ साल पहले उन्होंने वादा किया था कि सहारनपुर की तमाम खस्ताहाल सड़कें सरकार बनते ही बन जाएंगी। सरकार बनने के बाद रही सही सड़कें भी टूट गईं। बनना तो दूर, गड्ढामुक्त तक नहीं हो पाईं। बड़ा सवाल ये है कि हम पड़ोसी राज्यों से सीख कब लेंगे? मुझे तो ऐसे मामलों में नौकरशाहों की लापरवाही से ज्यादा जन प्रतिनिधियों की अनदेखी ज्यादा जिम्मेदार लगती है। काश, कोई इच्छाशक्ति वाला एक ही जनप्रतिनिधि हो गया होता।
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